अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन पिछले दिनों चीन के दौरे पर थी. ढेरों मुद्दों पर बात हुई पर इसमें बहुत कुछ हास्यास्पद भी था. दरअसल अमेरिका इन दिनों खुद भी एक औद्योगिक क्रांति के दौर में है और चाह रहा है की साफ़ ऊर्जा से सम्बंधित सभी उद्योग उसके यहाँ भी बड़े स्तर पर स्थापित हों और नौकरी मुहैय्या कराने में सहायक हों.
इन उद्योगों में सोलर पैनल बनाना, इलेक्ट्रिक व्हीकल उद्योग शामिल है. अब एक तरफ अमेरिका और यूरोप दुनिया भर में पर्यावरण सम्मलेन कर रहे हैं और विश्व को समझाने में लगे हैं की उन्हें प्रदूषण वाले स्रोतों से दूर रहना चाहीये और साफ़ ऊर्जा से उत्पादन करना चाहिए भले इसके लिए कीमत कुछ भी क्यों ना देनी पड़े.
पर वहीं दूसरी तरफ अमेरिका चीन को ये समझाने में लगा है की उसके यहाँ जिस स्तर पर उद्योग है, दुनिया में कहीं कोई प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है. उदाहरण के तौर पर ढेरों सब्सिडी देने के बाद भी अब आज की स्थिति में अमेरिका में सोलर पैनल बनाने की क्षमता कोई 10 या 11 GW की है. आने वाले कुछ सालों में इसमें बढ़ोत्तरी होकर ये चालीस GW तक जा सकता है.
पर उधर चीन की एक कंपनी अकेले ही कोई 400 GW सोलर पैनल का निर्माण कर ही रही है. इसमें बहुत कुछ निर्यात हो रहा है और सस्ते में दुनिया को उपलब्ध कराया जा रहा है. तो अब सवाल है की अमेरिका और यूरोप की कोई भी कंपनी राष्ट्र की सहायता के साथ भी इसके मुकाबले खड़ी नहीं हो पा रही है.
दुनिया को मालूम है की ये अरबों का व्यापार सिर्फ चीन के हिस्से में है और ये पैसा वो अपनी सेना को उन्नत करने में लगा रहा है. और इसी सेना के माध्यम से वो दुनिया भर में एक बड़े खतरे के रूप में उभर चुका है.
अब दूसरी चिंता है इल्क्ट्रिक गाड़ियां। चीन की कंपनी BYD दुनिया में EV निर्यात करने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है. शायद इसीलिए अब टेस्ला कंपनी को होश आ रहा है और वो भारत में उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं. दुनिया भर में चीनी EV बहुत सस्ते दामों उपलब्ध है पर ये भी नहीं मालूम की उनमें लगे सेमीकंडक्टर चिप्स कहा और कैसे जासूसी हैं. फिर बात वही है की अमेरिका और यूरोप की कोई कंपनी भी इसके मुकाबले में खड़ी नहीं हो पा रही है.
अमेरिका की तरफ से कहा तो गया पर चीन ने जाहिर है की अपनी ओर से असहमति जताई.और आगे भी बातचीत जारी रखने की बात कही.
फिर अमेरिका की अधेड़ उम्र की महिला ने चीन से रूस की मदद ना करने को भी कहा. और बताया की ऐसा करने पर चीनी कंपनियों को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है. पर इसमें भी हास्यास्पद बात ये है की जब आप खुद और यूरोप भी चीन के उत्पादन क्षमता का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं तो आप चीन की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी कैसे दे सकते हैं.
अमेरिकी राजनीति में हालात इतने दयनीय हो चले हैं की सारे लोग टिकटोक के खतरे और उसके चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से संबंधों को लेकर बात तो करते हैं पर सीधे सीधे पाबंदी नहीं लगा पाते। वो इसलिए क्योंकि टिकटोक अमेरिका में वाकई प्रसिद्द है और लाखों लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. तो जनप्रतिनिधियों को डर है की इस पर सीधे पाबंदी से वो अपनी ही जनता में अलोकप्रिय हो सकते हैं.