क्या अब भारत सरकार पर भी दबाव बढ़ेगा ??

भारत में 1947 (स्वतंत्रता के साल) से ही डेमोग्राफी एक बड़ा मुद्दा रहा है. जब मजहब के आधार पर देश बंटा और उस समय के अहिंसावादी भी इस विषय पर कुछ नहीं कर पाए तो ये निश्चित हो गया की भारत को भी अपनी डेमोग्राफी को लेकर अब आइंदा हमेशा सजग सचेत रहना होगा.

हालांकि उस समय की सरकारें जनता की इन वाजिब चिंताओं को लेकर गंभीर नहीं रही, लेकिन सामाजिक स्तर पर इसको लेकर चेतना रही ही है. असम अथवा बाकी उत्तर पूर्व में बदलती डेमोग्राफी का मामला हो या कश्मीर का अनुभव, भारत का बहुसंख्यक वर्ग इन सारे ही अनुभवों को संजो के रखे है.

भारत से दूर म्यांमार में घरेलु अस्थिरता हुई और हजारों हजार रोहिंग्या भारत आ घुसे. वो आज के भारत में पूरे देश में फ़ैल गए हैं, जम्मू और कश्मीर समेत. तो भारत में लम्बे समय से मांग रही है की सरकार घुसपैठ को ना सिर्फ रोके बल्कि जहाँ जहाँ बहुसंख्यक अल्पसंख्या में चले गए हैं, वहां के लिए भी कोई निर्णायक करवाई करे.

सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि डेमोग्राफी का महत्व देश की सीमा पर बसे गाँवों तक में है. आपको शायद ज्ञात होगा की चीन ने भारत के लगती सीमा में कई गाँव बसा दिए हैं जो चीनी सरकार प्रति वफादार होंगे। जवाब में भारत को अपने सीमा से लगे गाँवों में विकास और आधारभूत संरचना के लिए काम करना पड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये कहना पड़ा की सीमावर्ती गांव आखरी नहीं बल्कि देश के प्रथम गाँव हैं.

अब जो नयी खबर आ रही है वो ये है की ब्रिटेन में एक रवांडा प्लान वहां की संसद में मंजूर भी हो गया और अब पहले कुछ घुसपैठियों को रवांडा भेजने की तैयारी भी हो चुकी है.

ऋषि सुनक के सरकार ने ब्रिटेन में कानून बनाया की जनवरी 2022 के बाद से जो लोग फ्रांस जैसे सुरक्षित देश से इंग्लैंड में आकर शरण मांगेंगे उनको रवांडा नाम के पूर्वी अफ्रीकी देश भेजा जाएगा और उनके शरणार्थी आवेदन को स्वीकार किये जाने तक वो वहीं रहेंगे.

सुनक सरकार का कहना है की देश में घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. सामने चुनावों को देखते हुए ऋषि सुनक सरकार इस मुद्दे पर कठोर करवाई करते दिखना चाहती है.

ब्रिटेन इस घुसपैठ के मुद्दे पर इतना फंसा हुआ है की आसपड़ोस में भी झगडे शुरू हो चुके हैं. पीएम ऋषि सुनक कह रहे हैं की उनके बनाये कानून का इतना भय हो गया है की घुसपैठिये अब ब्रिटेन छोड़कर पड़ोस में आयरलैंड में जाकर बस रहे हैं.

उधर आयरलैंड में विरोध शुरू हो गया है क्योंकि उनके यहाँ शरण मांगने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और कई सार्वजनिक जगहों पर तम्बुओं के कसबे और शहर बसने शुरू हो गए हैं. आयरलैंड ने ब्रिटेन ने इन लोगों को वापस स्वीकारने को कहा तो ब्रिटेन ने शर्त लगा दी की जब तक फ्रांस इन्हे वापस नहीं स्वीकारता, वो भी नहीं करेगा. दरअसल यूरोप में फ्रांस आकर कई घुसपैठिये इंग्लिश चैनल पार कर ब्रिटेन में दाखिल हो जाते हैं और यहाँ शरण मांगने लगते हैं. फ्रांस के लिए भी सुविधाजनक है क्योंकि उनके यहाँ ये लोग भीड़ नहीं लगा रहे हैं.

तो अब फ्रांस, ब्रिटेन और आयरलैंड में झगड़े शुरू हो गए हैं की इन शरण मांगने वालों को कौन रखे और कितनी संख्या में.

इधर ऋषि सुनक सरकार ने कुछ 52 हजार लोगों की लिस्ट बना ली है जिनमें से पांच हजार को इस साल रवांडा भेजा जाना है. कई जगहों पर धरपकड़ भी शुरू हो चुकी है और इन लोगों तो डिटेंशन कैंप में रखा जा रहा है जिससे उन्हें कभी भी एक कमर्शियल जहाज में बैठकर अफ्रीकी देश रवांडा भेजा जा सके. बीते कुछ सालों में और खासतौर से कोरोना संकट के बाद साल के पचास हजार तक लोग ब्रिटेन में घुसे चले आ रहे हैं. ये संख्या साल दर साल बढ़ती भी जा रही है और एक प्रकार के उद्योग की शक्ल लेती जा रही है.

रवांडा एक गरीब देश है जो पैसे के बदले इस स्कीम में शामिल हुआ है और उसे कोई चिंता भी नहीं क्योंकि उसके देश में आने के बाद कोई वहां ठहरकर बसने की सोचेगा भी नहीं। तो वो शरण मांगने वाले एक बार फिर से ब्रिटेन की यात्रा पर निकल सकते है.

रवांडा प्लान के आलोचकों का कहना है की इस में खर्च बहुत हो रहा है. उनका ये भी कहना है की अफ़ग़ानिस्तान, इराक, सीरिया या अफ्रीकी देशों से आनेवालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की ब्रिटेन उन्हें और कहाँ भेजेगा. वो तो ब्रिटेन आकर अपनी किस्मत आजमाएंगे ही.

मगर अब जब एक विकसित देश, ब्रिटेन और बाकी यूरोप भी, अपने यहाँ घुसपैठ को लेकर इतने गंभीर हैं की वो इन लोगों को दूर एक असुरक्षित अफ्रीकी देश रवांडा में छोड़ आने को तैयार है तो क्या भारत सरकार पर दबाव नहीं पड़ेगा की वो भी घुसपैठ के मुद्दे पर निर्णायक कारवाई करे. विशेष तौर पर तब जब कई जगहों पर बहुसंख्यक रहने से डरने लगे हैं और वहां कानून व्यवस्था लचर होती जा रही है.

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