भारत में बीते कुछ सालों में थिएटर कमांड पर काम जोर शोर से जारी है और सेना के विभिन्न अंगों में आपसी तालमेल से इसे वास्तविक स्वरूप देने के प्रयास जारी है. अब ऐसा लगता है की भारत 2025 तक थिएटर कमांड को वास्तविक स्वरूप देने में सफल होगा.
भारत में दुनिया के कई और देशों की तरह अब तक सेना के विभिन्न अंग आपस में तालमेल कर युद्ध की तैयारी करते रहे हैं. इसमें थल, जल और वायु सेना अपने सैन्य साजो सामान अलग अलग रखते और उन्हें इस्तेमाल करना सीखते. फिर आपसी सामंजस्य कैसे हो, इसके लिए अलग से तैयारी और अभ्यास करना होता था . सेना के विभिन्न अंगों के अपने साजो सामान और राडार प्रणाली के साथ सप्लाई लाइन और ट्रेनिंग भी अलग अलग होने से समन्वय में दिक्कत पेश आती थी.
पर दुनिया के कई विकसित देशों की तरह भारत भी अब थिएटर कमांड व्यवस्था की ओर जाना चाह रहा है. इसमें दुश्मन देश की पहचान कर तीनो सेनाएं एक कमांडर और एक झंडे की नीचे सामंजस्य और समन्वय से काम करना सीखती है. उस दुश्मन देश के अनुसार रणनीति और साजो सामान, ख़ुफिया जानकारी इकठ्ठा करना होता है.
तो भारत के परिपेक्ष्य में पाकिस्तान की ओर एक थिएटर कमांड होना तय है जिसमें लम्बी दूरी के राकेट, देसी तेजस विमान का बड़ा बेडा, और नौसेना की अनेक टुकडिया शामिल होंगी. भारतीय, इसरायली और अमेरिकी सैटेलाइट और ड्रोन क्षमता का भी पूरा उपयोग होगा। ठीक उसी तरह चीन के खिलाफ सभी सेनाओं के सभी कमांड को मर्ज कर एक थिएटर कमांड लागू किया जाएगा, जिसमें ड्रोन और सैटेलाइट की क्षमता के साथ लम्बी दूरी के राकेट, हर तरह के लड़ाकू विमान, हमलावर देसी हेलीकाप्टर, ब्रह्मोस, शौर्य और अग्नि मिसाइल के साथ तोपखाने आदि तैनात किये जाएंगे।
इस तरह हर दुश्मन देश के लिए एक समर्पित कमांड होगा जिसे उस प्रतिद्वंदी के बारे में सभी जानकारियां होंगी और उस हिसाब से भारतीय रणनीति में सतत सुधार किया जाता रहेगा.
थिएटर कमांड इस बात का भी द्योतक है की कोई देश सैन्य टेक्नोलॉजी और उत्पादन में आगे बढ़ गया है. भारत आज के दिन कुछ चुनिंदा उन्नत टेक्नोलॉजी को छोड़कर पूरी तरह आत्मनिर्भर है. सेमीकंडक्टर उद्योग देश में लगने से इसमें और भी विकास होगा. तो अब सेना की जरुरत के हिसाब से उत्पादन क्षमता कको बढ़ाया या घटाया जा सकता है और उस टेक्नोलॉजी में फेरबदल भी किये जा सकते हैं.