भारत और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के बीच सहयोग बढ़ता ही जा रहा है. जहाँ सबसे उन्नत टेक्नोलॉजी पर साथ में काम शुरू हुआ है, पश्चिम से पैसा और संसाधन भी भारत का रुख कर रहे हैं.
विश्लेषक इसके पीछे कई तरह के कारण बताते जिसमें प्रमुख है की भारत को चीन के विरुद्ध एकमात्र शक्तिशाली विकल्प के रुप में देखा जाता है. असल कारण ये भी है की भारत लगभग अकेला एक बड़ा देश है जो डॉलर के खिलाफ अब तक किसी मुहीम में शामिल नहीं हुआ है. अपने हितों की रक्षा के लिए भारत रूपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए प्रयासरत जरूर है. मतलब तो यही निकलता है की भारत सावधान है की उसे अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण नुकसान ना उठाना पड़े. बात सिर्फ डॉलर की नहीं है. इजराइल और अमेरिका में राफा में सैनिक कारवाई को लेकर जबरदस्त मतभेद उभर आये हैं. अब अमेरिका अपनी बात मनवाने के लिए इजराइल की हथियार सप्लाई रोकने पर विचार कर रहा है और भारत इसी पूरे मामले को करीब से देख रहा है. क्या कल को युद्ध की स्थिति में उसे भी अमेरिका द्वारा रोक टोक का सामना करना पड़ सकता है.
डॉलर का इस्तेमाल कम से कम करने की मुहीम में अगुआ देश कई हैं जिनमें ईरान और रूस प्रमुख है. चीन भी अपनी मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा दे रहा है. तो हालांकि भारत और पश्चिम में जरुरत के हिसाब से सहयोग जारी है, लेकिन एक दूसरे को निशाना बनाने वाले बयानों की भी कोई कमी नहीं है.
अमेरिका सहित बाकी के पश्चिम के देशों में कई रिपोर्ट जारी हुआ करती है जिसमें भारतीय समाज और लोकतंत्र की गुणवत्ता को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की जाती है जिसे फिर वहां का मीडिया बार बार दुनिया को बताता रहता है. लेकिन वर्तमान भारत में विशेष बात यह है की वो जवाब देना जानता है.
खुद विदेश मंत्री जयशंकर ने बेहद तल्ख़ टिप्पणी में याद दिलाया भारत को लोकतंत्र और चुनाव कराने को लेकर ऐसे देश ज्ञान देते हैं जिनके खुद के चुनाव नतीजों के फैसले कोर्ट में हुआ करते हैं. निश्चित ही उनका ये बयान अमेरिका के चुनावी प्रणाली की ओर इशारा प्रतीत होता है.
इसके आगे भी उन्होंने एक बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा की पश्चिमी मीडिया खुलेआम भारत में कुछ दलों और प्रत्याशियों के पक्ष में एजेंडा चलाती हैं. वो चतुर लोग हैं. विदेश मंत्री और कई दशकों का राजनयिक अनुभव रखने वाले जयशंकर ने कहा की जो देश पिछले कई सालों से दुनिया को चला रहे हैं वो अपनी सत्ता इतनी आसानी से तो जाने देंगे नहीं।
पश्चिमी ब्लॉक के देशों के लिए एक और बड़ी खबर है जयशंकर के बयानों में. विदेश मंत्री ने कहा की भारत को आगे कम से कम दो से ढाई दशक तक तेज विकास दर के साथ बढ़ना है और इसके लिए ढेरों प्राकृतिक संसाधन चाहिए होंगे जिसकी बड़ी खेप रूस के पास है. ये अपने आप में बड़ा बयान है पश्चिमी देशों के लिए जो भारत को रूस से पूरी तरह अलग करना चाहते हैं. एक तरह से विदेश मामलों में भारत की नीति फ़िलहाल जयशंकर ही तय करते हैं और उन्होंने इशारों में कह ही दिया की रूस से दोस्ती अगले दो ढाई दशक तक तो चलने वाली है ही.
चीन के मामले पर बोलते हुए उन्होंने इशारे में कहा की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार कार्यक्रम कुछ देशों की कारण अटके हुए हैं. उनका जवाब भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट और वीटो मिलने की सम्भावना पर था.