आज तो खैर टेक्नोलॉजी का जमाना है पर कुछ साल पहले तक उद्योग श्रमिकों पर निर्भर थे और इसलिए उत्तरोत्तर श्रम कानूनों को बीते कई दशकों को सुधारा गया बल्कि एक देश दूसरे के श्रम कानूनों को देख कर भी सीखता या अनुसरण करता था.
तो ये बड़ी मामूली सी बात है कोई भी नियोक्ता यदि नियुक्त कर्मचारी को निकालना चाहे तो उसकी शर्तें पहले ही तय होती हैं और उसका पालन किया जायेगा, इसकी अपेक्षा भी होती है.
ठीक यही बात तो अमेरिकी डॉलर के इस्तेमाल और स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम के बारे में भी कही जा सकती है. दुनिया भर में यदि अधिकतम व्यापार अमेरिकी डॉलर के लेन देन से हो रहा है और कई छोटी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं उसी आधार पर व्यापारिक ढांचा विकसित करती हैं, तो कोई जवाबदेही तो होनी चाहिए.
वर्षों या कहें दशकों तक अमेरिकी डॉलर में व्यापार करने वाले छोटे बड़े देश और लाखों लाख व्यापारी, उन पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर कई कई करोड़ परिवार,,,इन सबके मानव अधिकार हैं या नहीं।
तो इसलिए रूस के लोगों ने जो भुगता वो बाकी देशों को ना भुगतना पड़े, इसके लिए कदम उठाये जाने की जरुरत है. रूस ने साल 2022 में फरवरी 24 को यूक्रेन में तथाकथित स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया जो आज तक जारी है.
अब इसके बाद कुछ ही हफ्तों में रूस के अमेरिकी डॉलर कोष पर कब्ज़ा कर लिया गया और इस देश को स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से निष्काषित कर दिया गया. दोनों ही बातें अप्रत्याशित हैं, रूस कोई दूर दर्ज का द्वीप नहीं जिसके किनारे होने का फर्क दूसरों पर ना पड़ता हो. तो इसलिए मानव अधिकार के अत्यधिक चिंतित रहने वाले अमेरिका को क्या इस बात का ध्यान नहीं रखना चाहिए था की व्यवस्था कुछ ऐसी कुछ होनी चाहिए की बाकी देश इसमें मुश्किल में ना आएं.
दशकों तक एक आम रूसी ग्राहक को बताया की फलाना उत्पाद इस्तेमाल करें, ये आपके लिए है और जीवन भर साथ देगा. बाहर की कंपनियों ने सपना दिखाया की रूसी ग्राहक बहुत महत्वपूर्ण है और बेचे जाने वाले उत्पाद उसके हित के लिए हैं. इसी पर भरोसा कर उसने सालों साल उत्पाद ख़रीदे और कंपनी को फायदा दिया पर जिस तरह 24 फरवरी 2022 के बाद कुछ हफ़्तों में ही ये सारी कंपनियां रूसी ग्राहकों की परवाह ना करते हुए अचानक सामान समेट कर गायब हुई, इसके बाद बाकी दुनिया का विश्वास उठना तो स्वाभाविक ही है.
तो इसलिए अब समय है जवाबदेही का. जब अमेरिका चाहता है की दुनिया भर के देश उसके डॉलर का इस्तेमाल कर व्यापार करें तो उसको किसी भी और सेवाप्रदाता की तरह नियमों को मानना होगा। अमेरिकी डॉलर के इस्तेमाल करने वाले सारे देश अमेरिका के साथ बाकायदा एक संधी/समझौता करें।
इस समझौते में ये बात स्पष्ट होनी चाहिए की अमेरिका यदि किसी देश पर डॉलर के इस्तेमाल को लेकर पाबंदी लगाता है तो इसके लागू होने के लिए कुछ साल का समय दिया जाएगा जिससे वो देश वैकल्पिक व्यवस्था की ओर बढ़ सके. इसमें पाबंदी के निशाने पर रहने वाले देश को अपने डॉलर स्वरूप के कोष को सोने या किसी अन्य मुद्रा में बदलने का समय भी मिल जाएगा।
नीति सीधी सी है, यदि आपके घर के भीतर टोल प्लाजा स्थापित किया जाता है तो सड़क भी वहीं से गुजरेगी। कोई भी ये नहीं कह सकता की टोल प्लाजा यानी सड़क इस्तेमाल करने का पैसा जमा मेरे घर में हो पर सड़क और शोरशराबा कहीं और दूसरी जगह हो. बिना गुठली का आम नहीं होता.
तो यदि अमेरिका अपनी मुद्रा डॉलर को दुनिया भर होने देना चाहता है तो उसे इस बात के लिए लिखित में आश्वाशन देना ही होगा की वो किसी देश पर डॉलर को लेकर प्रतिबन्ध तुरंत नहीं लगाएगा और कुछ सालों का समय देगा।
ठीक इसी तरह स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम, जो कई वित्तीय संगठनों और देशों के शामिल के होने से एक सहकार सरीखा बहुराष्ट्रीय संस्था है, उसका भी अनुबंध हर इस्तेमाल करने वाले देश से होना ही चाहिए की निष्काशन की स्थिति में पूरा समय दिया जायेगा की वैकल्पिक उपाय ढूंढें और लागू किये जा सकें.
स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम में सरकारें और कंपनियां आसानी से फण्ड ट्रांसफर कर पाती हैं और इससे व्यापार को गति मिलती है. आज के दिन कोई 3500 वित्तीय संगठनों के मेम्बरशिप वाली ये बहुराष्ट्रीय व्यवस्था G 10 देशों के केंद्रीय बैंकों, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, नेशनल बैंक ऑफ़ बेल्जियम द्वारा संचालित होता है. इसका हेडक्वार्टर्स बेल्जियम में ही स्थित है.