देश में लागू होने वाली नीतियों में कुछ कमी भी हो लेकिन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत अपने हितों को बहुत अच्छी तरह सुरक्षित कर पा रहा है. जहाँ आतंक के पोषक पाकिस्तान के इरादे रहते हैं की हर अंतर्राष्ट्रीय समूह में बैठकर बकवास करता रहे और मामले खराब करता रहे, वहीं ब्रिक्स समूह में उसके ये इरादे अब मात खा गए हैं.
पाकिस्तान के नेता इस बात को लेकर उम्मीद से थे की एक महत्वपूर्ण बहुराष्ट्रीय समूह, ब्रिक्स, में अब वो शामिल होकर भारत के खिलाफ बकवास कर पाएंगे। वो भी अपनी जनता को बता पाएंगे की देखो भारत के साथ हम भी हर महत्वपूर्ण बहुराष्ट्रीय समूह में शामिल हैं और कश्मीर मुद्दे को उठाते जा रहे हैं.
बीते साल दक्षिण अफ्रीका के नेतृत्व में ब्रिक्स ने कई देशों को समूह में शामिल कर हड़कमप मचा दिया। सऊदी और ईरान जैसे तेल और ऊर्जा संपन्न देश हों या अफ्रीका से इथियोपिया और फिर मिस्र हो, ये सभी देश ब्रिक्स में शामिल होकर पश्चिमी देशों की नींद उड़ाने लगे थे.
फिर पाकिस्तान की भी नींद खुली, उनके यहाँ भी चर्चा चल निकली की ये समूह इतना बड़ा हो गया और भारत भी इसमें है. भारत को बड़ी अर्थव्यवस्था होने के चलते हर साल G7 में भी निमंत्रित किया जाता है. पाकिस्तान वहां नहीं पहुंच सकता। लेकिन अब ब्रिक्स समूह भी बड़ा हो गया और ढेरों मुस्लिम देश इसमें शामिल हो चुके हैं. अब खुद को मुस्लिम दुनिया का कप्तान समझने वाला पाकिस्तान कैसे इससे बाहर रहे. तो उसने भी हाथ पैर मारना शुरू किया और चीन रूस के सामने लेटने लगा.
जिस सोवियत यूनियन के टूटने में पाकिस्तान ने भूमिका निभायी और अब व्लादिमीर पुतिन को इतनी कुर्बानी देनी पड़ रही और लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है,,,,,,,,,,पाकिस्तान के नेता उसी रूस से उम्मीद लगा रहे हैं की वो भारत पर दबाव बना कर पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल करवा देगा.
पाकिस्तान ने औपचारिक तौर पर आवेदन भी कर दिया। सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, तुर्की और कई कई अन्य देश भी ब्रिक्स में शामिल होना चाह रहे हैं. बांग्लादेश और श्रीलंका को भी भारत से उम्मीद है की वो भी ब्रिक्स में शामिल हो पाएंगे.
अब अचानक खबर आयी की ब्रिक्स में नए मेंबर फ़िलहाल स्वीकार नहीं किये जाएंगे. कारण बताया गया की अभी जो नए सदस्य शामिल हुए हैं, पहले उनका सही तरह एकीकरण हो सके. जाहिर है ब्रिक्स किसी एक या दो को मना नहीं करना चाहता था और इसलिए नयी मेम्बरशिप पर ही रोक लगाकर सबको सन्देश दे दिया गया.
अब इसमें राजनीति क्या हुई. ब्रिक्स में प्रमुख रूप से भारत रूस और चीन के बीच ही सब कुछ तय होता है. बड़ी और सक्षम अर्थव्यवस्थाएं होने के चलते यही मुख्य रूप से सारे फैसले करते हैं. पाकिस्तान को चीन से पूरी उम्मीद थी की वो उसे ब्रिक्स में शामिल करवा देगा। मगर फिर मुश्किल ये है की पाकिस्तान में आतंकी हमले में चीनी मारे जा रहे है. जहाँ चीनी मारे जा रहे हों और जहाँ चीनी निवेश खराब हो गया हो, उस देश को कैसे ब्रिक्स में शामिल करवाया जाये.
फिर भारत का एंगल। जैसे चीन ने पाकिस्तान को SCO में शामिल करवाया और भारत को रूस ने. लेकिन भारत SCO में अब रुचि लेना बंद कर चुका है. पश्चिमी मीडिया चीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. चीन की बदनामी हो रही है और कहा जा रहा है की चीन सबको साथ लेकर नहीं चल पा रहा है.
तो अगर अब चीन पाकिस्तान को लेकर ब्रिक्स में आये और यहाँ भी भारत रूचि लेना बंद कर दे और चीनी नेतृत्व के लिए स्थिति संभालना मुश्किल होगा. इसीलिए चीन ने पाकिस्तान से आवेदन डलवा दिया और नीतिगत रुप से नयी मेंबरशिप पर रोक भी लगवा दिया.
इधर चीन के लिए ये भी मुश्किल थी की जहाँ आतंकी देश पाकिस्तान चीन के करीब देखा जाता है, वहीं श्रीलंका और बांग्लादेश भारत से उम्मीद कर रहे थे ब्रिक्स में शामिल होने के लिए.अब चीन श्रीलंका और बांग्लादेश को किस आधार पर मना करे और श्रेय जाएगा भारत को. इसलिए भी नयी मेम्बरशिप पर रोक लगाना ही एकमात्र तरीका था.
चीन को भारत का साथ चाहिए क्योंकि अमेरिका और यूरोप ने चीनी उत्पाद पर भरी भरकम शुल्क लगाकर उसको महंगा कर दिया है. पश्चिम एशिया में भी भारत अमेरिका समर्थित आर्थिक गलियारा बना रहा है जिससे सीधे तौर पर सऊदी अरब को फायदा होगा। चीन के कदम यहाँ से उखड जाएंगे. ठीक इसी तरह भारत ईरान और रूस के साथ भी आर्थिक गलियारा बना रहा है जहाँ भी चीन और पाकिस्तान ही नुकसान में रहेंगे.
इसलिए इन सब कारणों से ब्रिक्स में भारी बहुमत से फैसला हुआ की विस्तार पर भी रोक लगाई जाती है जब तक नए शामिल हुए मेंबर ठीक तरह एकीकृत ना हो जाएँ. ये पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा धक्का है लेकिन इस फैसले से दुनिया में सन्देश गया है की भारत हर समूह में जो चाहता है वो करवा लेता है.
तो इससे भारत की पूछ परख बढ़ेगी और चीन की घटेगी.
ब्रिक्स के विस्तार पर ही रोक नहीं लगी. इसकी फुल मेम्बरशिप पाना भी अब मुश्किल हो गया है. रूसी विदेशी मंत्री सेर्गे लावरोव का कहना है की शामिल होने की इच्छा रखने वाले देशों को विभिन्न श्रेणियों में रखा जाएगा और अब फूल मेम्बरशिप चरणबद्ध तरीके से मिलेगी। रूस अब अपने पडोसी देश बेलारूस को शामिल करवाना चाह रहा है.