जी हाँ दुनिया में दो महासागरों को जोड़ने वाले पनामा कनाल में पानी कम हो गया है. ये कोई नयी घटना भी नहीं है क्योंकि पिछले साल पड़े सूखे से इस कनाल में पानी काफी कम हो गया था. इसके बाद पनामा कनाल अथॉरिटी ने फैसला लिया की 36 की जगह अब रोज के केवल 24 मालवाहक जहाज को ही गुजरने की अनुमति होगी।
अब इससे माल की आवाजाही पर असर पड़ना था सो पड़ा. अरबों का माल इधर से उधर जाने में देरी हो रही है और वो तो दिसंबर में कुछ बारिश हुई तो कुछ राहत मिली नहीं तो रोजाना गुजरने वाले जहाजों की संख्या में और भी कमी आती
अब भी ये माना जा रहा है की इस साल अप्रैल या मई में एक और समीक्षा की जाएगी और यदि मई महीने में पानी ठीक स्तर का गिरा तो ही हालात सामान्य हो पाएंगे। पूरा दोष क्लाइमेट चेंज को दिया जा रहा है. बात सिर्फ जहाजों की संख्या की नहीं है बल्कि कितने बड़े जहाजों को इस कनाल से गुजरने की अनुमति मिल सकती है उसे भी देखना होगा।
वो इसलिए की यदि बारिश ठीक हुई तो पानी का स्तर इतना होगा की भारी और बड़े जहाज भी उसमें से गुजर जाएंगे पर यदि बारिश में कुछ कमी हुई तो बड़े जहाजों को इधर से गुजरने की अनुमति बंद भी हो सकती है.
ज्ञात हो की एक और व्यापारिक रास्ता सुएज कनाल जो यूरोप और एशिया को जोड़ता है वहां भी खतरा बना हुआ है. यमन के हूथी विद्रोही लगातार लाल सागर में हमले कर मालवाहक जहाजों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. कई बड़े शिपिंग कंपनियों ने अब अफ्रीका से घूम के जाना तय किया है जिससे उन्ही कम से कम खतरा तो नहीं होगा।
तो अब देशों के लिए सामान्य व्यापार भी दूभर होता जा रहा है. चाहे क्लाइमेट चेंज हो या आतंकवाद, ये बड़ी चुनौतियाँ बन के सामने आ रही हैं.