भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर ईरान के साथ दस साल तक का एक समझौता किया है और ये माना जा रहा है की ये नए युग की शुरुआत है जहाँ भारत समेत दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका के देश मध्य एशिया और रूस से सीधे जुड़ पाएंगे.
पर ध्यान देने की बात है की ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं. अमेरिका और इजराइल नहीं चाहते की ईरान को किसी भी तरह मुख्यधारा में लाया जाए. वो नहीं चाहते की दुनिया ईरान से व्यापार करे. फिर भी अचानक भारत में चुनावी सरगर्मी के बीच ये घोषणा की जाती है की जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ईरान की तरफ रवाना हो गए हैं.
फिर इस बड़े समझौते की बात सामने आती है. अमेरिका से सवाल पूछा जाता है तो स्टैण्डर्ड सा जवाब आता है की जो कोई भी ईरान से व्यापार करेगा उस पर प्रतिबंधों का खतरा तो होगा. पर जहाँ भारतीय मीडिया में इसको लेकर सनसनी थी, विदेश मंत्री जयशंकर ने साधारण लहजे में जवाब दिया की अमेरिका को इस समझौते को लेकर संकीर्ण रवैय्या नहीं अपनाना चाहिए.
उन्होंने इशारा किया की इस समझौते से कई देशों के हित जुड़े हैं और इसलिए इसको उसी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए. पर अमेरिका की ओर से इस मुद्दे पर कोई आक्रामकता नहीं दिखी। और भी हैरान करने वाला था इजराइल की चुप्पी.
रणनीतिक सहयोगी भारत उस ईरान से समझौता और निवेश की बात कर रहा है जहाँ से उसकी ओर ढेरों मिसाइल दागे गए. तो इस चुप्पी के पीछे क्या है ?. रूस ने भारत ईरान के बीच समझौते का स्वागत किया पर ये भी गौर करने की बात थी की समझौते के दौरान कोई रूस से मौके पर कोई मौजूद नहीं था. जबकि चाबहार के माध्यम से मुख्यतः भारत और रूस जुड़ना चाह रहे हैं और क्षेत्रीय स्थिरता लाने में सहयोग करना चाहते हैं.
तो क्या समझा जाए की भारत ने पश्चिम एशिया में शांतिदूत की भूमिका निभायी है??? आइये समझें। बीते साल 2023 में भारत G 20 की अध्यक्षता कर रहा था. शिखर सम्मलेन में जब दुनिया भर के नेता दिल्ली में पहुंचे हुए थे तब एक बड़ी घोषणा हुई, भारत मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा. इसकी घोषणा के साथ स्पष्ट हो गया की इजराइल और सऊदी अरब समेत सुन्नी देशों के बीच रिश्ते बहाल होने जा रहे हैं और अब व्यापारिक कॉरिडोर पर काम होगा. इसका एक मतलब ये भी था की फिलिस्तीन का मुद्दा अब उतना प्रमुख नहीं रहने वाला था.
तो फिलिस्तीन की ओर अक्टूबर 7 को आतंकी घटना हुई पर इजराइल आज तक उसका जवाब दे रहा है. इधर इजराइल गाज़ा को लेकर ईरान और रूस ने सख्त रवैय्या अपना रखा था और अब तो बात इजराइल के कुछ नेताओं के खिलाफ ICC वारंट की भी आ गयी थी. लाल सागर में भी यमन में स्थित हूथी विद्रोहियों ने मालवाहक जहाजों पर हमला कर इस रास्ते को असुरक्षित कर दिया था. दुनिया के कई देशों में महंगाई बढ़ने का खतरा हो गया था.
तो इस तरह तय हो गया की ईरान और रूस भी इजराइल समेत पश्चिमी ब्लॉक पर हमलावर हैं और उन्हें शांत किये जाने की जरूरत है. अब ये कैसे हो. इसलिए इस बात की पूरी सम्भावना है की भारत के चाबहार पोर्ट पर उठाये कदम के बारे में अमेरिका और इजराइल दोनों जानते भी थे और इसपर उन्होंने कहीं ना कहीं सहमती भी दी ही होगी.
अब जब ईरान और रूस की तरफ भी आर्थिक गलियारा निकलने का तय हो गया तो उम्मीद है की ईरान और रूस की तरफ से भी तल्खी में कमी आएगी. इस तरह पश्चिम एशिया में फिर से शांति स्थापित होने की संभावना बढ़ी है.
पर इसमें अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी लाभ होगा. यदि इतने बड़े संकट के बाद शांति स्थापित हो सके और पश्चिम एशिया से आर्थिक गलियारे पर काम शुरू हो सके तो निश्चित ही चुनावी साल में बाइडेन को इसका लाभ होगा.
यही कारण है की इजराइल ने जहाँ फिलिस्तीन को मान्यता देने पर यूरोप में तीन देशों को जमकर खरी खोटी सुनायी, वहीं संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को मान्यता देने और अब प्रखर विरोधी ईरान के साथ चाबहार समझौते के बाद भी इजराइल की ओर भारत के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है.