क्या भारत अमेरिका को लेकर चिंतित है??,,,,,होना तो चाहिए

राष्ट्रपति चुनावी अभियान में बेहद मजबूत उम्मीदवार, डोनाल्ड ट्रम्प, ने एक बार फिर देश में निर्वासन कार्यक्रम चलाये जाने को लेकर समर्थकों से वादा किया है. उत्साहित समर्थक ट्रम्प के उस बयान पर ख़ुशी जताते मालूम होते हैं जिनमें वो कह रहे हैं की चुने जाने पर वो अमेरिका का सबसे व्यापक निर्वासन कार्यक्रम चलाएंगे.

इस बार के बयान में उन्होंने ये भी कहा की यदि कोई देश इन अवैध घुसपैठियों को स्वीकार करने से मना करता है तो भी उनका प्रशाषन ये करके ही रहेगा. जो कोई भी दुनियावी व्यवस्था को जनता है वो इस बात को समझ पायेगा की किसी भी देश पर दबाव नहीं बनाया जा सकता की वो एक बड़े समूह को अपने देश में स्वीकार करे. एक बड़े निर्वासन कार्यक्रम का वादा करने वाले ट्रम्प को ये भी मालूम ही होगा की इसका देश में क्या असर होगा. कानून व्यवस्था पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा. हेट क्राइम्स बढ़ जायेगा और ‘Black Lives Matter’ जैसे आंदोलन जोर पकड़ सकते हैं.

इस बात को यदि छोड़ भी दें की ट्रम्प ये घुसपैठियों को उनके मूल देश में भेजने का काम कैसे करने वाले हैं,,,तो भी इतना तो तय है की इससे अमेरिका में बहुत बड़े स्तर की अव्यवस्था फैलने का खतरा है. एक बड़े स्तर की अनिश्चितता का खतरा है जिसमें पढाई, सहयोग, निवेश आदि बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं.

चीन के आक्रामक होने के बाद भारत ने फिर से अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्लॉक से हर तरह से रिश्ते मजबूत करने की कोशिश की है. इसमें व्यापार अभूतपूर्व स्तर तक जा पंहुचा है और निवेश, टेक्नोलॉजी का आदान प्रदान ने भी गति पकड़ी है. लेकिन ट्रम्प या बाइडेन, दोनों इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं की अमेरिका की राजनीती अब चरम ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है.

अमेरिका में कई प्रतिष्ठित लोग अब इस बात की सम्भावना से भी इंकार नहीं कर रहे की हो सकता है उनका देश भी एक पार्टी के शाषन वाला देश बन जाये।
जहाँ बाइडेन प्रशाषन पर आरोप लगते हैं की घुसपैठियों को देश में आने देकर वो अपने लिए एक निर्णायक वोट बैंक बना रहे हैं,,वही ट्रम्प पर आरोप लगते हैं की वो एक खास समुदाय और मजहब के प्रति झुकाव रखते हैं. ट्रम्प के बारे में कहा जाने लगा है की वो उत्पादन वापस अमेरिका में लाना चाहते हैं जिससे उनके वोट बैंक को नौकरी, व्यवसाय के मौके भी मिले और टेक्नोलॉजी पर महारत भी.

अमेरिकी घरेलु राजनीति में टकराव बढ़ता जा रहा है और आने वाले समय में ये और जोर पकड़ेगा.अव्यवस्था फैलने पर ये मुमकिन है की अमेरिका में संगठित घुसपैठ और आपसी असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो.

तो ऐसे में चीन और पाकिस्तान के खतरे से जूझता भारत अमेरिका और बाकी पश्चिम को लेकर आश्वस्त नहीं रह सकता। भारत और रूस को ऐसे मौके पर एक साथ आकर इस पूरे क्षेत्र में शांति के लिए प्रयास तेज करने होंगे और व्यापारिक एकीकरण को बढ़ावा देना होगा. भारत से पश्चिम एशिया होते हुए यूरोप तक का व्यापारिक कॉरिडोर हो या मुंबई से ईरान होते हुए रूस तक ट्रेड कॉरिडोर,इन सब पर काम में तेजी लानी होगी।

भारत और अन्य विकासोन्मुख देशों को डॉलर छोड़ने की तैयारी पुरजोर करनी चाहिए. अमेरिका में मुश्किल होने पर वहां पर व्यापार और निवेश का मामला फंस सकता है और ऐसे में ये जरुरी है की भारत और रूस अपने अपने क्षेत्रों की जिम्मेदारी लें और क्षेत्रीय व्यापार राष्ट्रीय मुद्राओं में करने का तय करें।

भारत के लिए ये भी जरुरी है की वो पाकिस्तान के साथ सीधे रिश्ते ना रखकर ईरान या UAE के माध्यम से व्यापार करे और स्थिति को पूरी तरह हाथ से बाहर जाने से रोके.ईरान के साथ व्यापार, ऊर्जा और व्यापारिक कॉरिडोर पर काम तेज करना भी प्राथमिकता होनी चाहिए। इजराइल को भी इस मुद्दे पर विश्वास में लेने की आवश्यकता है.

भारत को जागृत रूप से दक्षिण एशिया के लिए कई मीडिया समूहों का एक नेटवर्क तैयार करना होगा जो इस क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण का प्रमुखता से प्रसार करें और विभिन्न देशों में इस को लेकर कहाँ कहाँ प्रतिरोध या विरोध है, उसको चिन्हित भी करे. दुनिया में इस बात को लेकर कोई भी डाउट नहीं होना चाहिए की भारत दक्षिण एशिया क्षेत्र का मुखिया है. सैनिक और व्यापारिक के साथ साथ शिक्षा में भी भारत को वैश्विक केन्द्र बनना होगा मगर इस पूरे क्षेत्र में डेमोग्राफी को लेकर भी सजग रहना होगा। फिल्म, नाटक, ड्रामा तो भारत में पानाप्पना ही चाहिए पर इसकी आड़ में अश्लीलता के उद्योग को ठिकाने लगाना होगा। इससे बहुतेरी समस्या हल होगी और लोग सामान्य व्यव्हार की ओर लौटेंगे।

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