सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी ये चुनावी साल है. जब भी चुनाव होते हैं तो जनता से जुड़े मुद्दे सामने आते हैं और उन पर लोग खुल के बात करते हैं. तो अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में क्या जरुरी मुद्दे हैं और भारत को उनकी परवाह क्यों होनी चाहिए ?
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में दो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं,,,,,,,,,,घुसपैठ जो रोकना और मजहब की ओर लौटना. अब ध्यान देने की बात है अमेरिका में टकराव मुख्यतः ट्रम्प और बाइडेन के बीच है. बाइडेन खेमा मुख्य रूप से जनता को और विशेष तौर पर महिलाओं को डराने की कोशिश में है की ट्रम्प के सत्ता में आते ही गर्भपात यानी एबॉर्शन के कानून सख्त कर दिए जाएंगे जिसका मतलब होगा की औरतों के स्वतंत्रता में सरकारी हस्तक्षेप.
पर सोचने की बात है की जब चीन और रूस से खतरा है और घुसपैठिये देश में घुसे चले आ रहे हैं तो गर्भपात इन राजनीतिक दलों के लिए इतना बड़ा मुद्दा क्यों बन रहा है. उसके पीछे कारण है ट्रम्प के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी परम्परावाद के नाम उन्मुक्त जीवनशैली को रोकना चाहती है. जाहिर है गर्भपात पर कानून कड़े हुए तो लड़कियों को कैसुअल सेक्स से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। तो इसका मतलब है की युवाओं में शादी को लेकर क्रेज बढ़ने लगेगा क्योंकि वही सेक्स के लिए संस्थागत और सम्मानजनक तरीका है ज्यादातर समाजों में.
इसके बाद परिवार बनने लगेंगे और वो बढ़ने भी लगेंगे। जब एक विशेष मजहब और संस्कार के परिवार ठीक ठाक संख्या में एक क्षेत्र में हो जाएंगे तो नीतियां
उसी हिसाब से बनने लगेगी। यही ट्रम्प के नेतृत्व वाले रिपब्लिकन पार्टी अब चाहती है. वो समझ गए हैं की वैश्वीकरण और हॉलीवुड द्वारा प्रसारित उन्मुक्त जीवन शैली का उनकी डेमोग्राफी पर विपरीत असर पड़ा है और वो अब इसमें सुधार लाकर अगले दस सालों में गोरे ईसाई लोगों की संख्या तो बढ़ाना ही चाहते हैं।
बाइडेन खेमा विरोधी पार्टी के नैरेटिव से अनभिज्ञ नहीं है. वैश्वीकरण को लेकर उनका रुख भी अब पलट गया है. एक तरफ तो वो चीन को कह रहे हैं की सरकारी सब्सिडी से आपके इलेक्ट्रिक व्हीकल निर्माता कंपनियां भर में सबसे सस्ता माल बेच रही है और बाकी किसी देश में ऐसे उद्योग नहीं रहे, वही दूसरी ओर अमेरिका में चिप्स एक्ट और इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट के माध्यम से सेमीकंडक्टर चिप्स और सोलर पैनल के साथ इलेक्ट्रिक व्हीकल उद्योगों को स्थापित करने में सरकारी मदद दी जा रही है. अमेरिका में नौकरियों का संकट है और बाइडेन खेमा इस संकट पर कुछ ठोस करते दिखना चाह रहे हैं.
मजे की बात है की एक समय दुनिया भर का दरोगा बनने वाला अमेरिका में ट्रम्प और बाइडेन, दोनों अफ़ग़ानिस्तान में मानव अधिकार और महिला अधिकारों की बात नहीं कर रहे हैं. वो अफ़ग़ानिस्तान छोड़ आये हैं और वहां की लड़कियों को तालिबान के दया पर छोड़ दिया है.
ऐसा नहीं समझिये की ट्रम्प की हार से अमेरिका में कोई खास फर्क पड़ने वाला है. अमेरिका में ज्यादातर राज्य पहले ही रिपब्लिकन और डेमोक्रैट के बीच बंटे हुए हैं और केवल सात से आठ राज्य ऐसे हैं जो किसी भी तरफ वोट कर सकते हैं और उसी से आखरी परिणाम तय होते हैं.
अब भारत से छल की बात
जहाँ सोवियत यूनियन भारत में इस्पात स्नयंत्र लगाकर दोस्ती निभा गया, रूस ने भारत के साथ ब्रह्मोस मिसाइल कार्यक्रम चलाया जिसका लाभ आज भारतीय सेनाओं को मिल रहा है. पर ये सिर्फ अमेरिका है और यूरोप में उसके कुछ पिछलग्गू देश जो हमेशा विभिन्न माध्यमों से दुनिया भर के देशों में नारी की आजादी के नाम पर और मजहबी आजादी के नाम पर भी डेमोग्राफी बदलने की फ़िराक में रहते हैं.
पिछले तीस सालों से ढेरों संगठनों के माध्यम से भारत के समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन ला भी दिया गया है. अभी कुछ दिन पहले ही भारत के एक छोटे शहर वीडियो वायरल हुआ था जिसमें विधायक महोदय पार्कों का निरिक्षण करते दिखे की वहां पर कोई अश्लीलता तो नहीं हो रही है. वीडियो वायरल हो गया क्योंकि उसमें लड़के लड़किया खुले तौर पर मांग करने लगे की उन्हे क्कुह घंटों के लिए कमरा किराये पर लेने की सुविधा होनी ही चाहिए।
तो एक तरफ तो अमेरिका डेमोग्राफी के मुद्दे पर अपने हाथ जला चूका है पर अब कोशिश में है स्थिति को नियंत्रण में लाने के, पर भारत जैसा देश जिसके पड़ोस में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव्स है और दुनिया के सबसे बड़े लैंड माफिया चीन हो, वहां पर युवा शादी की तरफ नहीं कैज़ुअल सेक्स ढूंढ रहे हैं.
क्या भारत सरकार और राष्ट्रवादी संगठन इस मुद्दे पर सजग हैं?????