तो क्या अब जिलेवार ‘marriage longevity’ सर्वे की भी जरुरत है ?? क्या इस बारे में सोचा जाना चाहिए ??

तेजी से आधुनिक होते समाज और टेक्नोलॉजी पर अत्यधिक बढ़ती निर्भरता के चलते समाज के सामने अप्रत्याशित चुनौतियाँ आ गयी हैं. आज इंटरनेट के माध्यम कौन कहाँ जुड़ा है और किस तरह की संगत में है, ये जानना बहुत मुश्किल हो चुका है.

तो आपके पड़ोस में ही कोई लड़का जिसके बारे में आप जानते होंगे की वो तो पढाई में कमजोर है, पूरी तरह संभव है की वो कोई करोड़पति निकले क्योंकि उसने गेमिंग में महारत हासिल की हुई है और वैसे लोगों के प्लेटफार्म से जुड़ा हुआ है. ठीक इसी तरह ये भी संभव है की कोई और पडोसी क्रिप्टोकरेंसी में निवेशक हो और खूब पैसा कमा या गँवा रहा हो.

अब जब एक मोहल्ले भर में इतनी विविधता हो सकती है तो इसका असर समाज पर पड़ना स्वाभाविक है. देखने में तो लगेगा की एक ही समाज है और सब सामान्य जीवन जी रहे हैं पर ध्यान देने की बात ये होगी की एक परिवार के भीतर भी सब अपना राग अपना ढपली बजा रहे होंगे.

दूसरी बात ये है की आजकल शादियां तो होती हैं पर इसमें कोई भी पक्ष किचन या बच्चे के लिए प्रशिक्षित नहीं होता. इसकी जिम्मेदारी भी किसी एक पक्ष पर तय नहीं होती, क्योंकि आधुनिकता के चलते पति पत्नी दोनों एक ही प्रकार से प्रशिक्षित होते हैं, अपने लिए पैसा कमाने के लिए .ये भी युवा जोड़े के लम्बे समय तक साथ रहने में बाधक हो सकता है क्योंकि आपसी समन्वय की कोई आवश्यकता ही नहीं है, मार्किट पूरी तरह दोनों को खुद पर निर्भर बना चुका है.

कॉर्पोरेट जॉब का प्रेशर और पैसा कमाने की होड़ तो खैर बीते दशकों में रफ़्तार पकड़ ही चूका है. बड़े शहरों में लम्बी दूरी की यात्रा कर नौकरी या व्यवसाय भी ट्रेंड में है और इसलिए घर में समय कम देना स्वाभाविक ही है.

इन सभी विषयों और इसके इतर भी कई कारण है जिनके कारण शादियां होना और उसका चलना भी मुश्किल होता रहा है.आज तो खैर बेंगलुरु जैसे हाई टेक शहर में भी पानी की मारामारी शुरू हो चुकी है. सफल युवा होने से रिलेशनशिप के ढेरो ऑफर और असफल रहने से पैसे के लिए जूझना जिससे सर उठाने की भी फुर्सत ना मिले, इससे भी समाज को बांधे रखने में मुश्किल हो रही है.

आज के भारतीय इस बात के लिए सजग रहे की जिस तरह अमेरिका और यूरोप की सफलता में वहां के लोगों को कुछ लाभ मिला होगा पर उसका लाभ बाहर से गए लोगों ने ज्यादा उठाया. इसी तरह भारतीय भी इस बात को लेकर आश्वस्त ना रहे की भारत के विकसित होने का पूरा पूरा लाभ उनको और उनके बच्चों को ही मिलेगा।

आज ही हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर उत्तर पूर्व के राज्यों और गोवा घूम आइये, आपको मालूम होगा की आप इन पहाड़ी राज्यों में भले कभी ना आये हों पर कई विदेशी हैं जो यहाँ पूरा पूरा गाँव बसा के बैठे हैं.

तो इस कारण अब ये जरुरी हो चला है की भारत में सेन्सस के इतर जिलेवार ‘marriage longevity’ सर्वे भी किया जाए. इससे मालूम होगा की किन जिलों में तलाक के मामले कितने और किस तरह के आ रहे हैं. और इससे इसका भी आभास होगा की भारत का समाज कितना अभी भी अपनी परम्पराओं से जुड़ा हुआ है और वो नयी पीढ़ी को कितना स्थानांतरित किया जा रहा है.

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