मीडिया मक्कारी और वो भी अनलिमिटेड….

ज्यादा पुरानी बात नहीं है पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) संसद में पारित हो चुका था और देश में एक धड़ा विरोध कर रहा था ,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ राजनीतिक दल भी इस का फायदा उठाने की ताक में थे

उस दौरान राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल और डिबेट में इस बात को प्रमुखता से उठाया जाने लगा की विदेशों में कई जगह पर इस कानून का विरोध हो रहा है. इसके बारे में कहा जाने लगा की इससे भारत की छवि को पश्चिम के देशों में नुक्सान हो रहा है.

और तो और एक आश्चर्यजनक बात ये हुई की अमेरिका और ब्रिटेन में कुछ नगर निगम या सिटी कौंसिल ने CAA के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया और इसको काफी बढ़ा चढ़ा के के भारत में पेश किया गया

क्या आप सोच सकते हैं की अमेरिका का सिटी कौंसिल या नगर निगम (नगर पालिका) भारत की संसद में पारित कानून को गलत बताये और भारत में मीडिया का एक धड़ा इसको खूब प्रचार करने लगे

इसके माध्यम से कहने लगे की दुनिया भर में भारत की साख पर बट्टा लग रहा है

एक तो सवाल यही पुछा जाना चाहिए की भारत में कोई नगर निगम या नगर पालिका अथवा कोई पंचायत अगर विदेशी मामलों में प्रस्ताव करने लगे तो यहाँ पर क्या प्रतिक्रिया होगी ,,,,,,,,,,,,,,,,जो भी विपक्षी दल होगा वो तो यही पूछेगा की गर्मी में पानी और बिजली की व्यवस्था करो ,,,,,,,,,,,,,,ये देश विदेश देखने के लिए अलग से एक विदेश मंत्रालय है

लेकिन बात है भारत में मीडिया की और उसके चरित्र की

जब तक ये ठीक तरह समझा नहीं जाएगा की भारत में मीडिया का कम से कम एक धड़ा और ये काफी असरोरसूख़ रखता है ,,,,,,,दरअसल विलायती एजेंडा को आगे बढाते हैं और देश में एक आबादी को हमेशा नीचे दिखाने का काम करते हैं

दूसरी बात,,,,,,,,,,,,अमेरिका में किसी निगम या पालिका में क्या प्रस्ताव पारित हो रहा है उसका हवाला देकर भारत की संसद में पारित कानून की आलोचना कहाँ तक उचित है,,,,,,,,,,,,,,,अगर अमेरिका इतना ही लोकतान्त्रिक है और वो निगम या पालिका के स्तर तक,,,,,,,,,,,,,,,तो क्या भारतीय मीडिया ने कभी ये सवाल पुछा की अबू ग़रीब की तस्वीरों पर इन सिटी कौंसिल की क्या प्रतिक्रिया थी

अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों का स्कूल ना जाना और इराक में एक झूठ के आधार पर अमेरिकी हमला ,,,,,,,,,,,,,,,,इस पर क्या कोई प्रस्ताव पारित किया गया था ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुआंतानामो जेल और उसमें जो बाहर के कैदियों के जो हालात हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,उस पर क्या कोई प्रस्ताव पारित हुआ है ?

क्यूबा में कइयों बार तख्तापलट की कोशिश पर कोई प्रस्ताव पारित हुआ है ??

ये कई सवाल हैं जिन्हे नहीं उठाया जाता क्योंकि मुद्दा है अमेरिका में बैठे कुछ ख़ास गुटों की दलाली करनी है और उनके कहे को ही एजेंडा बनाना है और पब्लिक में परोसना है

अमेरिका में इतना हल्ला हुआ की ट्रम्प की जीत और हिलेरी क्लिंटन की हार में रूस के हस्तक्षेप का हाथ हैं ,,,,,,,,,,इस पर कई साल बवाल होता रहा ,,,,,,,,,,,,,,,,आज तक कोई पकड़ा नहीं गया और किसी को सजा भी नहीं हुई ,,,,,,,,,,,,,,तो इतना हल्ला क्यों मचाया जा रहा था ,,,,,,,,,,,,,क्या इसलिए क्योंकि ट्रम्प की जीत से हथियार कंपनियां निराश थी की ये कोई युद्ध शुरू करने नहीं जा रहा है ???? खुद ट्रम्प ने भी कहा की वो कुछ राष्ट्रपतियों में से हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में कोई युद्ध शुरू नहीं किया

तो क्या इन मुद्दों पर अमेरिका की सिटी कौंसिल या नगर निगम कोई प्रस्ताव पारित करता है ??

और भी सुनिया जो सिटी कौंसिल या नगर निगम या पालिका भारत के CAA कानून को लेकर डिप्रेशन में था
क्या वो ट्रम्प की अबकी बयानबाजी को लेकर कोई प्रस्ताव पारित कर रहा है ??
जब ट्रम्प कहते हैं की स्थिति सँभालने लायक नहीं है और बाहरी लोगों को बाहर भेजना होगा तो अमेरिका में कितना सिटी कौंसिल ने इस के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया

जब विवेक रामास्वामी, जो की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के सबसे प्रखर वक्त उभरे थे ,,,,,,,,,,,उनके पत्नी को कहना पड़ा की अगर लोग विवेक के सांवले रंग या उनके हिन्दू धर्मावलम्बी होने के चलते वोट नही करना चाहते तो हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते,,,,,,,,,,,,,तो कितने नगर निगम या नगर पालिका में इस बारे में निंदा प्रस्ताव आया ??

जब विवेक रामास्वामी सवसे पहले रेस से बाहर हुए क्योंकि उनसे बार बार पुछा जा रहा था की वो हिन्दू होकर कैसे इस judeo-christian देश का नेतृत्व कर सकते हैं तो कितने नगर निगम और नगर पालिकाओं ने इस पर कोई निंदा प्रस्ताव पारित किया

जब पाकिस्तान में दशकों से हिन्दू बलोच पश्तून और सिंधी पर अत्याचार हो रहे थे तो भारत की मीडिया ने कितना कवरेज किया और अमेरिका के नगर निगमों ने कितने प्रस्ताव पारित किये ??

जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री घुसपैठियों को घुसपैठिया बताकर रवांडा तक छोड़ने के आधिकारिक प्लान पर काम कर रहे हैं तो अमेरिका या ब्रिटेन में कितने निगम और पालिका या ग्राम सभाएं इसका विरोध कर रही हैं

या भारतीय मीडिया में इस बारे में कितना कवरेज है ,,,,,,,,,,,,,,,,कांग्रेस या कम्युनिस्ट दल इस बारे में कितने विरोध प्रदर्शन आयोजित किये हैं ??

पर गलती सिर्फ मीडिया संस्थानों की उन विलायती निगमों और ग्राम सभाओं की नहीं है ,,,,,,,,गलती भारत सरकार की भी है जो आज तक एक सुस्पष्ट नीति नहीं बना सका की किस तरह के मीडिया को वो समर्थन देगा और किस तरह को समर्थन नहीं देगा
भारत सरकार हो या भाजपा के कई राज्य सरकारें ,,,,,,,,,,,,,,,,सरकारी समर्थन के मामले में ”’टके सेर भाजी टके सेर खाजा” की नीति पर काम कर रही है
भाजी और खाजा में अंतर ना कर पाने की वजह से आज देश के ही कुछ भागों में भी भाजपा का विस्तार नहीं हो पाया है

इसमें कोई डाउट नहीं है की मीडिया के कई तथाकथित पुराने और कद्दावर चेहरे एक ख़ास तरह की सोच को आगे बढ़ाने के कारण प्रतिष्ठित किये गए,,,,,,,,उन सबको वर्तमान का शाषन अब भी समर्थन देता रहेगा तो ये भारी भूल या गलती होगी
समय है देसी राजनीति और देसी संस्कृति को समर्थन और पोषण देने का

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