तो बीती शाम पूर्व वायु सेना अध्यक्ष आरके भदौरिया ने भाजपा ज्वाइन कर ली. चुनावी मौसम में एक पूर्व अधिकारी का एक राजनीतिक दल ज्वाइन करना कोई अप्रत्याशित खबर तो नहीं है.
लेकिन भदौरिया का मामला एक श्रृंखला में देखें तो पूरी पिक्चर समझ आती है. क्योंकि पूर्व वायु सेना अध्यक्ष से पहले अमेरिका में राजदूत रहे तरनजीत सिंह संधू भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं.
अब जहाँ संधू के भाजपा ज्वाइन करने पर ये कहा जाने लगा की सरकार रिपीट होने पर उन्हें जयशंकर के सहयोगी के रूप में काम दिया जा सकता है, वहीं अब भदौरिया की भगवा चोला ओढ़ने पर यही कुछ बातें चलने लगी की इन्हे भी रक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री का पद देकर रक्षा उद्योग को अधिकतम देसी बनाने का जिम्मा सौंपा जा सकता है.
अपने आप में ये बहुत बड़ी खबर है. जहाँ एक तरफ भारत रक्षा तकनीक में किसी भी एक देश पर निर्भर नही होना चाहता और कई स्रोतों से लाभान्वित होने की मंशा रखता है, वहां पर तरनजीत सिंह संधू और आरके भदौरिया जैसे अनुभवी लोगों को सरकार रिपीट होने पर मौका देना बेहद कारगर उपाय सिद्ध होने की सम्भावना है.
जहाँ भारत अमेरिका से GE जेट इंजन तकनीक हासिल करने के करीब है और सेमीकंडकटर की डिज़ाइन और उत्पादन देश में करने के लिये प्रयासरत है, वहीं भारत हर विदेशी डील में इस बात को शामिल कराता है की कुछ MRO के साथ तकनीक हस्तांतरण भी हो. और फिर ग्लोबल सप्लाई चेन में भारतीय कंपनियों को जोड़ने के लिए भी भारत आग्रही होता है.
ऐसे में अमेरिका में काम कर चुके और वहां के पावर कॉरिडोर में जाना पहचाना नाम तरनजीत सिंह संधू भारत के लिए बढ़िया तरीके से लॉबिंग कर सकते हैं. ठीक इस तरह हलके लड़ाकू विमान तेजस, मध्यम वजनी विमान तेजस MK1A और फिर पांचवी पीढी के देसी लड़ाकू विमान AMCA, सबके लिए पुरजोर समर्थन करने वालों में पूर्व वायु सेना अध्यक्ष आरके भदौरिया रहे हैं.
आज के दिन हलके लड़ाकू विमान तेजस के बड़े ऑर्डर दिए जा चुके हैं और अब भारत मध्यम वजनी लड़ाकू विमानों के उत्पादन के करीब है. अब जब अमेरिका से GE इंजन का भारत में उत्पादन तय है, तो पांचवी पीढ़ी के विमान भी इस दशक के अंत तक दुनिया के सामने होंगे। इसी प्रोजेक्ट में वायु सेना के अनुभवी अधिकारी और आस पड़ोस की रक्षा क्षमता के आंकलन से लैस भदौरिया कारगर साबित हो सकते हैं.
ज्ञात हो की वैसे भी मोदी सरकार रक्षा उद्योग के देसीकरण पर काफी जोर दे रही थी पर रूस यूक्रेन टकराव से ये समझ बनी की तकनीक के मामले में विदेश पर निर्भरता जीती हुई लड़ाई हरा सकता है.
ये भी देखना दिलजस्प है की डोमेन एक्सपर्ट्स को मौका यानी किसी विषय के माहिर को उसी काम में लगाने का चलन भारतीय राजनीति में नया प्रयोग जैसा है. जहाँ पहले टर्म में मोदी सरकार में एक राजनैतिक हस्ती, सुषमा स्वराज, विदेश मंत्री थी, दूसरे कार्यकाल में अप्रत्याशित रूप से भारत में विदेश मामले के दिग्गज, डॉ एस जयशंकर को ये पद मिला।
पिछले पांच साल में एक ब्यूरोक्रेट रहे जयशंकर ने जिस तरह भारत की विदेश नीति को धार दी है, आज के दिन इजराइल और ईरान, फिलिस्तीन हो या रूस के साथ अमेरिका, यूक्रेन, और अब पूरा यूरोप भी, सभी दिल्ली आना जाना कर रहे हैं।
जहाँ जयशंकर प्रत्यक्ष रूप में धीमा बोलकर और मुस्कुरा कर बात करते हैं, उनकी कही गयी बातें पाकिस्तान में इमरान खान अपनी चुनावी रैलियों में सुनाया करते हैं और जर्मनी, इटली के शीर्ष नेता उस पर सफाई देते फिरते है.
हालात ऐसे हो चले हैं की विदेशी मीडिया की भारत को नीचे दिखाने की कोशिश खबर नहीं बन पाती पर जयशंकर उस पर क्या व्यंग्य करेंगे वो ज्यादा वायरल वीडियो बनता है.
कई अंतर्राष्ट्रीय फोरम में ऐसा हुआ है की इससे पहले की जयशंकर पश्चिमी दोमुहेपन को एक्सपोज़ करें,,,वहां के मंत्री खुद ही सफाई देने में जुट जाते हैं.
देश विदेश में बहुतेरे ऐसे हैं जो नरेंद्र मोदी की प्रशाषणिक क्षमता का लोहा मानते हैं की उन्होंने किसी राजनैतिक हस्ती की जगह इस बार एक विदेश मामलों के डोमेन एक्सपर्ट जयशंकर को बुला कर ये पद ऑफर किया।