इटली की प्रधानमंत्री जिओर्जिओ मेलोनी और फ्रांस की महिला नेता मरीन ला पेन, दो ऐसी महिलाएं जो यूरोप भर में दक्षिणपंथ का उफान लाने में सफल रही है. यूक्रेन में युद्ध, कोरोना का प्रसार, चीन का सस्ते सामान से यूरोप की अर्थव्यवस्था पर असर, बढ़ती महँगाई, पर्यावरण के मुद्दे और अमेरिका कितना भरोसेमंद, ऐसे सभी मुद्दों पर चिंतित यूरोप ने अपना एक बार फिर साझा संसद चुना है.
पूरे पूरे यूरोप में फ़िलहाल कितनी बेचैनी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस बार 51 प्रतिशत वोटिंग के साथ पिछले बीस साल का रिकॉर्ड टूटा है. ये ठीक है की यूरोप की संसद अभी भी मध्यमार्गियों के हाथ में है पर दक्षिणपंथ का उदय भी नकारा नहीं जा सकता.
इटली का सत्तारूढ़ दल brothers ऑफ़ italy जिसका चेहरा जिओर्जिओ मेलोनी है और फ्रांस की विपक्षी नेता मरीन ला पेन ने साथ आकर European Conservatives एंड Reformists नाम से एक गठबंधन बनाया जिसके पास अब 73 सांसद होंगे। कुल 720 सदस्यों वाली यूरोपियन संसद में ये कोई बहुत बड़ा नम्बर नहीं मालूम पड़ता लेकिन इस बात को ध्यान में रखना होगा अन्य भी ऐसी दक्षिणपंथी ताकतें हैं जिन्होंने अलग रहकर चुनाव लड़ा और बेहतर प्रदर्शन किया.
इनमें प्रमुख था जर्मनी की AfD पार्टी जो अति दक्षिणपंथी मानी जाती है और हाल में कई विवादों में घिरी रही जिसके कारण वो European Conservatives एंड Reformists गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकी. इसी तरह हंगरी में सत्तारूढ़ विक्टर ओरबन के पार्टी भी समान विचारों की है पर पुतिन के प्रति नरम रवैय्या होने के चलते वो भी इस गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सकी.
लेकिन मजे के बात ये है की जहाँ European Conservatives and Reformists के पास 73 सांसद होंगे, पहचान पर आधारित लोकतंत्र की मांग करने वाली पार्टियों के गठबंधन Identity and Democracy के पास 58 सांसद होंगे. फिर अलग चुनाव लड़ने वाली जर्मनी की AfD ने 15 सांसदों को जिताने में सफलता पायी है और हंगरी की सत्तारूढ़ पार्टी Fidesz ने 11 सांसद जिताये हैं.
इस तरह कई मुद्दों पर समान नीति का पैरोकार ये सुपर ग्रुप आज 157 सांसदों के साथ चौथाई से कुछ कम संख्या में है. पर ये भी देखना होगा की इटली और हंगरी में दक्षिणपंथी पार्टियां शाषन में है और फ्रांस, जर्मनी मैं वहां की दक्षिणपंथी पार्टियां शाषन में आ सकती है.
यूरोपियन संसद के नतीजों से घबराये फ्रांस के राष्ट्रपति ने देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी है. जून महीने के आखिर तक चुनाव होने हैं. लम्बे समय से सत्ता के लिए संघर्षरत मरीन ला पेन इस बार मैक्रॉन पर भारी पड़ सकती हैं.
यूरोप में दक्षिणपंथी पार्टियां मुख्य्र रूप में घुसपैठ और बदलते डेमोग्राफी को लेकर लामबंदी करती रही हैं. जर्मनी में AfD पार्टी विशेष तौर पर अपने ही देश में निगरानी का सामना कर रही है और इस पार्टी को बैन करने की मांग भी उठी थी.
ऐसे समय में जब जर्मनी में कुछ चौथाई नागरिक गैर जर्मन मूल के हैं, AfD के प्रति विरोध भी है और समर्थन भी क्योंकि ये पार्टी भी गैर जर्मन मूल के लोगो के प्रति सख्त नीतियां लागू करने के पक्ष में है.
सोशल मीडिया के दौर में दक्षिणपंथी पार्टियों के लिए लामबंदी करना आसान हो गया है और ब्रिटेन में जो डेमोग्राफी का परिवर्तन वो देख रहे हैं उससे चिंता होना स्वाभाविक ही है.
कुछ साल लगेंगे पर अगर घुसपैठ पर यूरोप एक सख्त नीति लाता है तो घुसपैठियों के लिए भारत का रुख करना आसान होगा। चुकी अमेरिका और यूरोप में बाहरी लोगों के लिए सहनशीलता खत्म होती जा रही है तो इसीलिए पाकिस्तान जैसे देश अब भारत के नजदीक आना चाहते हैं.
पाकिस्तान में या कहें बांग्लादेश में भी ये समझ बन रही है की भारत में घुसपैठ करना और वहां पर टिके रहना ज्यादा आसान है. इसीलिए अब वो किसी भी तरह भारत से रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं.