अमेरिका में इन दिनों ज्यादातर यूनिवर्सिटी कैंपस में जबरदस्त धरना प्रदर्शन चल रहे हैं. ये प्रदर्शन फिलिस्तीन के मुद्दे पर और इजराइल के साथ संबंधों को सीमित करने को लेकर किये जा रहे हैं.
मामला काफी आगे बढ़ चूका है. कई यहूदी छात्र छात्राएं (इजराइल भी एक यहूदी देश है) खुद को यूनिवर्सिटी कैंपस में असुरक्षित मान रहे हैं. कइयों को राह चलते या अन्य सार्वजनिक जगहों पर जाते भी डर लग रहा है.
जहाँ कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रशाषन ने न्यू यॉर्क पुलिस को विश्वविद्यालय में दाखिल हो प्रदर्शनों को ख़त्म करने को कहा है वहीं UCLA (कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी) में टियर गैस चलाने की नौबत आ गयी है.
जाहिर है इन यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों छात्राओं पर भी गहरा असर पड़ा है. या तो उनमें से कई इन धरना प्रदर्शनों में शामिल हुए होंगे या इसका विरोध कर रहे होंगे. ऐसे छात्र छात्राओं के बारे में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी को पड़ताल करना ही होगा। ऐसे छात्र छात्राओं के सोशल मीडिया पर भी गहरी नजर रखनी ही होगी. बाहर के इन आंदोलनों को सरकार किसी भी कीमत पर देश में आयातित नहीं होने दे सकती.
अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति ट्रम्प के कार्यकाल में “Black Lives Matter” जैसे बड़े आंदोलन हुए जो कई शहरों में हफ़्तों जारी रहे. अब ट्रम्प के विरोधी और अपेक्षाकृत अधिक खुले विचारों के माने जाने वाले बाइडेन के प्रशाशन में भी बड़ी और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उग्र धरने और प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.
तो इसका आशय यही निकलता है की अमेरिका में घरेलु स्तर पर असंतुलन की स्थिति लगातार बनी भी हुई है और वो गहराती भी जा रही है. इस आधार पर भारत सरकार ये भी तय करे की क्या अन्य देशों में पढाई के लिए भेजा जाना भारतीय युवाओं के लिए अधिक हितकर होगा??
बैंक लोन आदि को लेकर ऐसी नीति बनाई जा सकती है जिसमें स्थिर घरेलु माहौल वाले विकसित देशों में ही भारतीय छात्र छात्राओं को प्रोत्साहित किया जा सके. इस संबंध में ऐसे भारतीय क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहाँ से बड़े स्तर पर बच्चे अमेरिका में ऊंची पढाई के लिए जाते हैं, वहां पर युवाओं और उनके माँ बाप की काउन्सलिंग की जा सकती है और उन्हें वैकल्पिक देश और यूनिवर्सिटी सुझाये सकते हैं.