जो बाइडेन ने दी बधाई, अमेरिकी NSA का भारत दौरा तय हुआ, क्या अमेरिका किसी और नतीजे की अपेक्षा कर रहा था ??

विश्व के कई नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी को तीसरी बार भारत के नेतृत्व के लिए बधाई और शुभकामना दी. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन उन आखरी नेताओं में जिन्होंने फोन उठाकर पीएम मोदी से बात भी की और दोनों देशों में प्रगाढ़ता जारी रखने की बात भी कही. इधर एक बार फिर से पीएम मोदी के शपथ लेने के पूर्व ही अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुल्लिवन का भारत दौरा तय हो गया है.

पर दिलजस्प ये है की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भारत सरकार ने जनवरी 26 को गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था. भारत सरकार इसी दौरान क्वाड देशों का भी शिखर सम्मेलन करना चाह रही थी. ज्ञात हो क्वाड में भारत अमेरिका समेत ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं और ये समूह मुख्यतः चीन के आक्रामक रवैय्ये से निपटने के लिए बनाया गया है.

पर जो बाइडेन ने व्यस्तता का हवाला देकर इस मौके पर भारत नहीं आये.इधर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुल्लिवन का भारत दौरा भी दो बार एलान किया गया पर दोनों बार इसे कैंसिल करना पड़ा. यूक्रेन और गाजा में चल रही सैन्य कार्रवाइयों का हवाला दिया गया.

मोदी सरकार की ओर से भी कोई ख़ास प्रतिक्रिया तो नहीं आयी पर मीडिया में शोर उठने लगा की अमेरिका में कुछ अलगाववादियों की हत्या की कोशिश के आरोप और भारत में मई में होने वाले चुनावों के चलते अमेरिकी प्रशाषन ने इस रिश्ते को ठंडे बस्ते में डाल दिया था.

अमेरिका और कनाडा समेत कुछ अन्य देशों में हत्या को साजिश को लेकर इतना हल्ला मचाया गया मगर सबूतों के तौर पर कहीं कुछ भी सामने नहीं रखा गया. दोनों बातों को मिलाकर देखें तो ऐसा प्रतीत होता है की अमेरिकी प्रशाषन यहाँ भारत में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद लगाए था और चुनाव बड़ा नतीजे घोषित होने और पीएम मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की खबर पुष्ट होने पर ही दोबारा से संबंध बहाल किये गए.

रूस से तेल खरीद हो या ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह का समझौता मामला, या फिर डॉलर से ज्यादा भारतीय रूपये को बढ़ावा देना, बंगलादेश और म्यांमार के मुद्दों पर सहमती ना होना, चीन के खिलाफ सैन्य गठबंधन के लिए तैयार ना होना जैसे अनेक मुद्दे थे जिन पर भारत अमेरिका में जबर मतभेद हैं.

कई विश्लेषक हैं जिन्हे ये लगता है की अमेरिका भारत में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद कर रहा था और जब वो हो ना सका तो उसने फिर से उच्चतम स्तर से प्रगाढ़ता बढ़ाने का तय किया है.

अमेरिका को भारत का रक्षा बाजार अत्यंत ही आकर्षक लगता है. वो जरूर ये चाहेगा की भारत के रक्षा बाजार से रूस पूरी तरह बाहर हो जाए और देसी उत्पादन के बजाय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अमेरिका से सीधे हथियार खरीद के लिए सहमत हो जाये.

सिलसिलेवार ढंग से देखें तो अमेरिका ने भारत में चुनाव पूर्व कई ऐसे काम किये जिसे हस्तक्षेप माना जा सकता है. गणतंत्र दिवस पर जो बाइडेन का ना आना जबकि इस मौके पर क्वाड की मीटिंग भी हो जाती और अमेरिका इसे काफी तरजीह देता है, NSA जेक सुल्लिवन के दो दौरे घोषित होना पर बाद में इसको कैंसिल करना, भारत की संसद में पारित CAA कानून पर गैर जरूरी टिप्पणी करना, विदेशी जमीन पर हत्या की साजिश की खबरों को बढ़ा चढ़ा के हवा देना,
भारत के लोकतंत्र और वोटिंग प्रक्रिया पर प्रश्न उठाना।

अब जब स्पष्ट हो गया की पीएम मोदी ही नेता रहने वाले हैं तो रक्षा उत्पाद बेचने को लेकर और उन्नत टेक्नोलॉजीस में साथ काम करने को लेकर NSA जेक सुल्लिवन का दौरा घोषित कर दिया गया. जबकि पश्चिम एशिया और यूक्रेन में युद्ध अभी भी जारी है.

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